बूंद-बूंद से सुजलाम, सुफलाम राजस्थान
(सभी तस्वीरें- हलधर)पीयूष शर्मा
जयपुर। राजस्थान का नाम आते ही जहन में सूखे यदि सूखे का ख्याल आता है तो अब अपने ख्याल को बदल लिजिए। क्योंकि, बूंद-बूंद की बचत से राजस्थान अब जलिस्थान की शक्ल ले रहा है। यह बात हम नहीं, सरकार के आंकडे कह रहे है। गौरतलब है कि प्रदेश में अब तक 30 लाख 92 हजार हैक्टयर क्षेत्र में सूक्ष्म सिंचाई का जाल बिछ चुका है। इससे मरूधरा सुजलाम, सुफलाम हो उठी है। वहीं, सालाना सवा लाख करोड़ लीटर पानी की बचत हो रही है। ये आंकडे आपको चौकाएगें भी और सोचने को भी मजबूर करेंगे। लेकिन, सच यही है। समय और तकनीक के साथ राजस्थान कृषि क्षेत्र में अपनी शक्ल बदल रहा हैं। गौरतलब है कि इस बदलाव को ज्यादा समय नहीं हुआ है। महज दो दशक के भीतर प्रदेश ने यह मुकाम हासिल किया है। कृषि विशेषज्ञो का कहना है कि सूक्ष्म सिंचाई में आंकड़ो का ग्राफ और ऊपर जा सकता था बशर्ते बीच के कुछ सालों में इस ओर ध्यान दिया जाता। खैर कारण कुछ भी रहे हो, लेकिन, सूक्ष्म सिंचाई की दिशा में प्रदेश सरकार और किसान गंभीरता के साथ सोचने लगे है। जबकि, हालात घी से ज्यादा पानी की कीमत जैसे थे। पश्चिमी राजस्थान में सोने का अससास कराने वाले ऊं चे-नीचे रेतीले टिब्बे अब किसानों और पशुओं के लिए जीवनदायीं साबित हो रहेहै। अनार, खजूर, अंजीर, अमरूद, जीरा जैसी हाईवैल्यू फसलों के उत्पादन होता देख परदेशी अपने गांव लौटने लगे है। वहीं, संरक्षित खेती का बढ़ता दायरा भी रेगिस्तान को जलस्तिान की संज्ञा देने लगा है। मरू प्रदेश में यह क्रांति आई है बूंद-बूंद पानी की बचत से। बूंद चाहे बारिश की हो या फिर भूजल की। अपना कमाल दिखा रही है। फसल उत्पादन के साथ किसानों की समृद्धि बढ़ा रही है। इससे प्रदेश की सूरत और सीरत बदल रही है।
95 लाख हैक्टयर में सिंचाई
सरकारी आंकडों पर गौर करें तो राजस्थान में शुद्ध बुवाई क्षेत्र 184 लाख 23 हजार हैक्टयर है। इस सकल बुवाई क्षेत्र में शुद्ध सिंचित क्षेत्र करीब 95 लाख हैक्टयर है। इस क्षेत्र में भी बूंद-बूंद सिंचाई तेजी से अपने पैर पसार रही है।
1.16 लाख करोड़ लीटर पानी की बचत
इस नेट सिंचिंत क्षेत्र मे भी 30 लाख 92 हजार हैक्टयर क्षेत्र सूक्ष्म सिंचाई के दायरे में आ चुका है। उद्यान आयुक्तालय के संयुक्त निदेशक डॉ. राजेन्द्र सिंह खींचड़ ने बताया कि राजस्थान को जलिस्तान बनाने में ड्रिप, फव्वारा, मिनीस्प्रिंकर तकनीक का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बूंद-बूंद के महत्व को लेकर आज हर वर्ग का किसान जागरूकता दिखा रहा है। क्योंकि, पानी की कीमत राजस्थान का वाशिन्दा शुरू से जानता है। सूक्ष्म सिंचाई में अब तक हुई प्रगति से जल बचत का गणित निकाले तो राजस्थान हर साल सवा लाख करोड़ लीटर पानी की बचत कर रहा है। यदि इसमें फार्मपौंड, डिग्गी, पाइपलाइन जैसे संसाधनो को भी शामिल कर लिया जाएं तो जल बचत का यह आंकड़ा चौकाने वाला हो सकता है।
किसान हुए जागरूक
उन्होने बताया कि प्रदेश में 8 लाख 44 हजार हैक्टयर क्षेत्र ऐसा है, जिसमें किसानों ने अपने स्तर पर यानी बिना सरकारी सहायता लिए सूक्ष्म सिंचाई को अपनाया है। गौरतलब है कि सरकारी सहायता से करीब 22.48 लाख हैक्टयर क्षेत्र में सूक्ष्म सिंचाई का विस्तार हुआ है। इसमें फव्वारा सिंचाई का आंकड़ा काफी ज्यादा है।
नाम बदले, रफ्तार नहीं
बात करें सरकार की सूक्ष्म सिंचाई योजना की तो इस योजना के नाम कई बार बदल चुके है। लेकिन, जल बचत की रफ्तार में कोई अंतर नहीं आया। वर्ष 2006-07 में इस योजना को सरकार ने सूक्ष्म सिंचाई नाम दिया। वर्ष 2010 में यह राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन, वर्ष 2014 में ऑन फार्म वाटर मैनेजमेंट, वर्ष 2015 में पीएम कृषि सिंचाई योजना और वर्ष 2022 में पीएम सूक्ष्म सिंचाई: पर ड्रॉप, मोर क्रॉप बन गई।
यह मिलता है अनुदान
पर ड्रॉप, मोर क्रॉप योजना के तजत प्रदेश में लघु-सीमांत और एसटी-एसी-महिला किसानों को इकाई लागत का 75 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है। जबकि, सभी दूसरी श्रेणी के किसानों को लागत का 70 फीसदी अनुदान देय है।