एक-एक एकड़ से नेचुरल राजस्थान
(सभी तस्वीरें- हलधर)पीयूष शर्मा
जयपुर। राजस्थान को नेचुरल बनाने का एक्शन प्लान तैयार हो चुका है। इस साल कृषि विभाग ने किसी जिला विशेष पर मेहरबानी नहीं दिखाई है। बल्कि, समूचे राजस्थान के किसानों को लाभान्वित करने की योजना तैयारी की है। ताकि, प्रत्येक किसान को रसायन मुक्त खेती का ककहरा आसानी से पढ़ाया जा सके। दरअसल, यहां हम बात कर रहे है राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन की। केन्द्र प्रवर्तित इस योजना को प्रदेश में लागू करने की पूरी तैयारी विभागीय स्तर पर हो चुकी है। योजना को बूंद-बूंद से घट भरे की तर्ज पर धरातल दिया जायेगा। ताकि, किसान की आर्थिकी और फसल उत्पादन पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं आए। गौरतलब है कि कृषि विभाग एक-एक एकड़ क्षेत्र से प्राकृतिक खेती की शुरूआत करने जा रहा है। कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक (एटीसी) डॉ. अर्जुनलाल ने बताया कि प्राकृतिक खेती में किसान को उत्पादन के साथ-साथ बाजार और मौसमी जोखिम जैसी चुनौतियों जूझना पड़ता है। इसके मध्यनजर विभाग ने प्रत्येक किसान को एक-एक एकड़ क्षेत्रफल तक सीमित किया गया है। ताकि, ज्यादा से ज्यादा किसानों को मिशन का समुचित लाभ मिल सके। उल्लेखनीय एमपीयूएटी उदयपुर में प्राकृतिक खेती पर रिसर्च होने से मिशन के दायरे में शामिल होने वाले किसानों को फसल उत्पादन नुकसान की स्थिति से दो चार नहीं होना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि खेती की यह विधा जैविक खेती से थोड़ी अलग है। इसमें मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों के सहारे खेती की जाती है। ताकि, कृषि लागत कम रहे। पिछले कुछ समय से देश में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर जोर दिया जा रहा है। कई किसान खेती के इस तरीके को अपना चुके है।
135 करोड़ का बजट
उन्होने बताया कि विभाग ने एक्शन प्लान के तहत 135 करोड़ रूपए से अधिक का बजट प्रस्ताव भारत सरकार को भिजवाया है। हालांकि, अभी सरकार से मिशन परिचालन के लिए बजट नहीं मिला है। इसके लिए लगातार समन्वय बनाएं हुए है। गौरतलब है कि प्रदेश में मिशन अभी एक साल के लिए लागू किया गया है।

बनाएं 1800 कलस्टर
उन्होंने बताया कि पूरे राजस्थान मेें मिशन के तहत 1800 कलस्टर बनाएं गए है। एक कलस्टर में 125 किसान शामिल होंगे। प्रत्येक किसान को एक-एक एकड़ क्षेत्र में प्राकृतिक खेती करनी होगी।
क्या है नेचुरल फार्मिंग
प्राकृतिक खेती एक प्रकार की संपोषणीय खेती है। जहां, उत्पादन लागत को कम किया जाता है। प्राकृतिक खेती में जल, जंगल, जमीन के लिए हानिकारक रसायन, कीटनाशी, खरपतवारनाशी के साथ-साथ बाहरी कृषि आदान का उपयोग शून्य होता है। इस तरह की खेती में भूमि-जल-पारिस्थितिक पर्यावरण में आपसी सामंजस्य बिठाकर खेती की जाती है। ताकि, भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हो।
मिशन से केचुआं बाहर
उन्होने बताया कि मिशन के तहत के चुआ खाद, वर्मीवॉश यूनिट की स्थापना पर कोई अनुदान देय नहीं होगा। किसान दूसरी योजना के जरिए इन बायो आदान यूनिट की स्थापना कर सकेंगे।
बायो प्रॉडक्ट पर जोर
बता दें कि नेचुरल फार्मिंग में किसान को जैविक कृषि आदान के लिए गौ-पालन से जुडऩा होगा। क्योंकि, इसमें बीजामृत, जीवामृत, घन जीवामृत, वानस्पतिक काढ़े जैसे बायो प्रॉडक्ट तैयार करने के लिए गाय के गोबर और गौमूत्र की जरूरत होती है। हालांकि, किसान भैंस के साथ-साथ दूसरे पशुओं के अपशिष्ट का भी उपयोग कर सकते है। लेकिन, गाय के गोबर और गौमूत्र को इस खेती में प्रधानता दी गई है।
एक लाख किसानों को लाभ
उन्होंने बताया कि एक लाख से ज्यादा किसानों ने अपने यहां प्राकृतिक आदान यूनिट स्थापित की हुई है। वहीं, 18,77,50 लाख किसानों ने अपना पंजीयन एनएमएनएफ आईटी पोर्टल पर करवा लिया है। उन्होने बताया कि किसाना पंजीयन का कार्य जारी है।