सर्पदंश: थानक नहीं, पहुंचे अस्पताल

नई दिल्ली 15-Sep-2024 09:43 AM

सर्पदंश: थानक नहीं, पहुंचे अस्पताल

(सभी तस्वीरें- हलधर)

बरसात में सांप के काटने की घटनाएं अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं, जिससे स्त्री-पुरुष किसान, कृषि श्रमिक, और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। सर्पदंश के परिणामस्वरूप कुछ ही समय में मौत, लकवा, सांस लेने में कठिनाई, रक्तस्राव संबंधी विकार, किडनी फेल्योर, स्थायी विकलांगता, और अंग विच्छेदन हो सकते हैं। यह समस्या विकासशील देशों, विशेषकर कृषि प्रधान ग्रामीण और वन बस्तियों में देखी जाती है। यह घटनाएं स्वास्थ्य संकट नहीं हैं। बल्कि, सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी डालती हैं। हालांकि, इस समस्या को मानव-वन्यजीव संघर्ष की दूसरी घटनाओं की तरह गंभीरता से नहीं लिया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल दुनिया भर में लगभग 50.4 लाख लोग सांपों द्वारा काटे जाते हैं, और 81,410 से 1,37,880 लोग सर्पदंश से मृत्यु का शिकार होते हैं। इसके अतिरिक्त, लाखों लोग विकलांगता और दूसरे गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। हालांकि, सर्पदंश पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में भारी अंतर होता है। मार्च, 2024 को भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना की शुरुआत के समय जारी विवरण के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 30-40 लाख सर्पदंश के मामले होते हैं, जिनमें से लगभग 50,000 मौतें होती हैं, जो वैश्विक सर्पदंश मौतों का लगभग आधा हिस्सा है। सर्पदंश के शिकार लोगों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही अस्पतालों में रिपोर्ट करता है, जिससे सर्पदंश की वास्तविक संख्या दर्ज नहीं हो पाती। केंद्रीय स्वास्थ्य जांच ब्यूरो की रिपोर्ट (2016-2020) के अनुसार, भारत में सर्पदंश के मामलों की औसत वार्षिक आवृत्ति लगभग 3 लाख है और लगभग 2,000 मौतें सर्पदंश के कारण होती हैं। वास्तविक स्थिति यह है कि भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों की सटीक संख्या उपलब्ध नहीं है। क्योंकि, यह घटनाएं अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों और वन बस्तियों में होती हैं, जहां पुलिस और अस्पतालों तक मामले नहीं पहुंचते और रिपोर्टिंग नहीं हो पाती। भारत में मानसून का मौसम, जो आमतौर पर जून से सितंबर तक रहता है, सर्पदंश के लिए सबसे संवेदनशील माना जाता है। इस मौसम में बाढ़ और पानी के कारण सांपों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं, जिससे वह भोजन और आश्रय की तलाश में मानव बस्तियों की ओर आ जाते हैं। मानसून के दौरान कृषि गतिविधियां भी चरम पर होती हैं, किसान और मजदूर अनजाने में सांपों के संपर्क में आ सकते हैं, जो ऊंची घास अथवा मलबे के नीचे छिपे होते हैं। गर्म और गीली परिस्थितियों में शिकार की उपलब्धता बढ़ जाती है, जिससे सांपों की गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं। जनसंख्या वृद्धि और मानव-जीव संघर्ष के कारण भारत में सांपों और मनुष्यों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। मानव आवास विस्तार प्राकृतिक आवासों पर अतिक्रमण करता है, जिससे ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में सांपों के काटने की संभावना बढ़ जाती है। जलवायु परिवर्तन सांपों के व्यवहार को प्रभावित कर रहा है। वनों की कटाई और कृषि विस्तार के कारण सांप भोजन और आश्रय की तलाश में मानव बस्तियों की ओर खिंचे जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में समय पर चिकित्सा सहायता और एंटीवेनम की कमी मृत्यु दर को बढ़ाती है। भारत सरकार ने सर्पदंश से होने वाली मौतों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना शुरू की है, जिसका लक्ष्य 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों और विकलांगता की संख्या को आधा करना है। हालांकि, इस समस्या का असली समाधान सावधानी और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने में है। सांप हमारे शत्रु नहीं हैं, वह वास्तव में खेतों में चूहों को नियंत्रित करके किसानों की फसलों की रक्षा करते हैं। वाइल्ड लाइफ एसओएस के अनुसार, भारत में सांपों की लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 60 से अधिक विषैले, 40 हल्के रूप से विषैले और लगभग 180 जहर रहित प्रजातियाँ हैं। कोबरा, रसैल और वाइपर जैसी प्रजातियां अत्यंत विषैली होती हैं, जबकि जहर रहित सांप बिना कारण मारे जाते हैं। सांप आमतौर पर आत्मरक्षा के लिए काटते हैं, इसलिए सतर्कता सबसे अच्छा बचाव है। घास, झाडिय़ों और ढीली चट्टानों के आसपास जाते समय लंबी पैंट और मजबूत जूते पहनें। किसानों को भारी घास अथवा लकड़ी का सामान ढोते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वहां सांप तो नहीं हैं। स्थानीय सांपों की प्रजातियों को पहचानें और बिना वजह झाडिय़ों अथवा घास में न घुसें। यदि सांप काट ले, तो घरेलू उपायों की बजाय तुरंत चिकित्सा सहायता प्राप्त करें और एंटीवेनम का उपयोग करें। खुद से इलाज करने की कोशिश न करें, जैसे घाव को काटना, चूसना अथवा किसी लोक देवता के थानक पर ले जाना अथवा झांड फूक, क्योंकि यह स्थिति को और खराब कर सकता है।