केंचुआ खाद का महत्व - केंचुआ द्वारा कम्पोस्ट
(सभी तस्वीरें- हलधर)दिव्या गुर्जर, पिंकी शर्मा, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर, जयपुर
रासायनिक उर्वरक और कीट नाशको के अत्याधिक प्रयोग से भूमि के भौतिक और रासायनिक गुणों पर विपरीत प्रभाव पड रहा है। साथ ही, पर्यावरण संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो रही है। मृदा को स्वस्थ बनाए रखने, उत्पादन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पर्यावरण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जैविक खादों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जैविक खादो में फार्म यार्ड खाद, हरी खाद, केंचुए की खाद, नैडप की खाद इसके अलावा मूंगफली केक इत्यादि मुख्य रूप से है। कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए केंचुए का प्रयोग किया जाता है। इस विधि को केंचुआ द्वारा कम्पोस्ट बनाना कहा जाता है।
तीन प्रकार के केंचुए
एपीजेइक (उपरी सतह पर)
एनीसिक (उपरी सतह के नीचे)
इन्डोजेइक (गहरी सतह पर)
ऐसिनिया फीटिडा और ऐसिनिया होरटन्सिस प्रजातियाँ मुख्य है। इनमें से ऐसिनिया फीटिडा को लाल केंचुआ भी कहा जाता है। यह 0 से 35 डिग्री तक तापमान को सहन कर सकते है। यह केचुंए कम समय से अधिक कम्पोस्ट बनाते है। इनकी प्रजनन क्षमता भी ज्यादा होती है। ऐसिनिया होरटन्सिस का आकार ऐसिनिया फीटिडा से बडा होता है, परन्तु इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है और कम्पोस्ट बनाने की क्षमता भी कम होती है।
केंचुओ के मुख्य गुण
केंचुए सडने, गलने और तोडने की प्रक्रिया को बढ़ाने में सहायक होते है।
मृदा में वायु संचार के प्रवाह को बढ़ाने में सहायक है।
जैव क्षतिषील व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों का विखंडन व विद्यटन कर उन्हें कम्पोस्ट में बदल देते है।
खाद बनाने की विधि
खाद बनाने के लिए छायाकार ऊँचे स्थान पर जमीन की सतह से ऊपर मिट्टी डालकर बैड बनाते है। जिससे सूर्य की किरणे, गर्मी और बरसात से बचा जा सके। बैड में सबसे नीचे एक-दो इंच बालू/रेतीली मिट्टी बिछाते है। इसके ऊपर 3-4 सरसो अथवा गेहँू के भूसे की परत और पानी छिड़ककर नम कर देते है। इसके बाद 8-10 इंच कार्बनिक पदार्थ जैसे गोबर की परत, पत्तो, बची हुई साक सब्जियां आदि की परत लगाते है। इसके बाद एक हजार केंचुए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से छोड देते है। बैड के ऊपर ताजा गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए । क्योंकि, ताजा गोबर का तापमान अधिक होने के कारण केंचुए मर सकते है। बैड में नमी बानाने के लिए प्रतिदिन पानी का छिड़काव करना चाहिए। गर्मी में 2-3 दिन बाद और सर्दी में एक बार करना चाहिए। बैंड को बोरी/पत्तो से ढ़ककर रखना चाहिए । क्योंकि, केंचुए अंधेरे में काम करते है। केंचुए ऊपर से खाते हुए नीचे की तरफ जाते है और खाद में परिवर्तित कर देते है। 2-3 महीने में वर्मी कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाती है। इससे एक हजार केंचुए प्रतिदिन एक किग्रा. वर्मी कम्पोस्ट तैयार करते है। केंचुए की खाद बनने के बाद इसमें पानी छिडकना बन्द कर देते है और कम्पोस्ट को एकत्रित कर लेते है। केंचुए नमी में रहना पसन्द करते है इसलिए जब कम्पोस्ट सूखती है तो केंचुए नीचे की नम सतह पर चले जाते है और जब कम्पोस्टिग पदार्थ रखा जाता है तो केंचुए ऊपर आकर अपना काम प्रारम्भ कर देते है।
क्यों है लाभकारी
पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहायक होते है। मृदा की उर्वरक शक्ति को बढ़ाते है। वर्मी कम्पोस्ट खाद प्राकृतिक और सस्ती होती है। भूमि में उपयोगी जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद का उपयोग कम होने से लागत में कमी होती है। भूमि में वाष्पीकरण कम होता है अत: सिंचाई जल की बचत होती है। लगातार वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से ऊसर भूमि को सुधारा जा सकता है। फलो, सब्जियों और अनाजों का उत्पादन बढता है और स्वाद, रंग और आकार अच्छा होता है। पौधों में रोगरोधी क्षमता भी बढ़ जाती है। इसके प्रयोग से खेतों में खरपतवार भी कम होते है। पौधों को पोषक तत्वों की उपयुक्त मात्रा उपलब्ध कराता है। पौधों की जड़ो का आकार और वृद्धि बढाने में सहायक होता है। ग्रीन हाउस गैस के उत्पादन को रोकता है। रोजगार के अवसर बढ़ाने में सहायक है।
केंचुआ खाद का उपयोग
खाद्यान्न फसलों में 5-6 टन प्रति हैक्टयर की दर से डालना चाहिए।
सब्जियों में 3-5 टन प्रति हैक्टयर की दर से उपयोग करना चाहिए।
बगीचों में 20 किग्रा. प्रति पौधों के हिसाब से डालना चाहिए।
गमलों में 500 ग्राम तक डालना चाहिए।
खाद का प्रयोग मल्च के रूप में भी किया जा सकता है।
मृदा को सुधारने के लिए 1-2 इंच मोटी परत फैलाकर और मिट्टी के मिलाने के बाद बागों में पौधों को लगाना चाहिए।