भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने किया कमाल, अब किसान होंगे खुशहाल
(सभी तस्वीरें- हलधर)भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने कमाल कर दिया, जिसका सीधा फायदा देश के करोड़ों किसानों को होने वाला है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों को जीन-एडिटिंग के मामले में बड़ी कामयाबी मिली है। वैश्विक स्तर पर जीन-एडिटिंग के लिए CRISPR-Cas का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक का अब भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने विकल्प खोज निकाला है। बहुत जल्द ही इस स्वदेशी तकनीक का उपयोग पौधों के डीएनए में सटीक बदलाव के लिए किया जा सकेगा। कृषि वैज्ञानिकों की इस खोज से भविष्य में और बेहतर किस्मों के विकास करना आसान हो जाएगा। इससे पहले जीन-एडिटिंग के लिए CRISPR-Cas पर निर्भर रहना पड़ता था।
इसलिए बड़ी कामयाबी यह तकनीक
जानकारी के लिए बता दें कि फसलों में जीन-एडिटिंग के लिए अभी तक CRISPR-Cas9 और Cas12a सबसे प्रसिद्ध तकनीक है। यह तकनीक एक कैंची की तरह काम करती है, जो पौधे के डीएनए में किसी खास जगह पर कट लगाकर उसकी गुणवत्ता में सुधार करती है। भारतीयों के लिए परेशानी की बात ये थी कि इस तकनीक का बौद्धिक संपदा अधिकार अमेरिका की बड़ी कंपनियों और संस्थानों के पास है। इस वजह से जब भारतीय वैज्ञानिक इस तकनीक का उपयोग करके कोई नई किस्म बनाते हैं, तो उसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए इन विदेशी कंपनियों को लाइसेंस शुल्क देना पड़ता है। यह शुल्क काफी महंगा है और इसीलिए परेशानी का प्रमुख कारण भी है।
सीआरआरआई की टीम ने की खोज
भारतीय कृषि वैज्ञानिक इस समस्या से निपटने के लिए वर्षों से खोज में लगे हुए थे। अब जाकर इन वैज्ञानिकों को सफलता मिली है। कटक स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कुतुबुद्दीन अली मोल्ला और उनकी टीम ने नई जीन-एडिटिंग तकनीक विकसित की है। यह तकनीक Cas प्रोटीन की जगह ट्रांसपोसॉन-एसोसिएटेड प्रोटीन का उपयोग करती है। यह ट्रांसपोसॉन-एसोसिएटेड प्रोटीन भी कैंची की तरह ही काम करती है, लेकिन इसके अनेक फायदे हैं। डॉ. मोल्ला का कहना है कि अगर Cas9 और Cas12a फुटबॉल हैं, तो TnpB बेसबॉल की तरह हैं। Cas प्रोटीन में 1000-1400 अमीनो एसिड होते हैं। वहीं, भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा इस्तेमाल किए गए TnpB प्रोटीन में केवल 408 अमीनो एसिड हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि इसके छोटे आकार के कारण प्रोटीन को पौधे की कोशिकाओं में भेजना बेहद आसान है। उन्होंने बताया कि इसके लिए जटिल प्रक्रियाओं की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे समय और लागत दोनों की बचत होती है।
गेम-चेंजर साबित हो सकती है नई तकनीक
विशेषज्ञों का कहना है कि यह नई तकनीक भारतीय कृषि के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है। साथ ही इस तकनीक के माध्यम से भारतीय वैज्ञानिकों को फसल सुधार के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रहना होगा। भारी लाइसेंस शुल्क भी नहीं चुकाना पड़ेगा। इस तकनीक से फसलों की नई और बेहतर किस्में तैयार करना सस्ता और तेज हो जाएगा, जिसका फायदा देश के किसानों को मिलेगा।
तकनीक को मिला पेटेंट, आलोचकों को मिला जवाब
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक ए. के. सिंह का कहना है कि यह स्वदेशी तकनीक उन आलोचकों को भी करारा जवाब है, जो कहते हैं कि जीन-एडिटिंग तकनीक विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण में है। आईसीएआर ने इस तकनीक के लिए 31 अगस्त, 2022 को पेटेंट आवेदन किया था, और भारतीय पेटेंट कार्यालय ने 15 सितंबर, 2025 को 20 साल के लिए यह पेटेंट प्रदान कर दिया है। अब इस तकनीक के वैश्विक स्तर पर संरक्षण के लिए भी आवेदन किया गया है।
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